Pativrata

Pativrata is a term used in Hindu culture and traditions to refer to a married woman who is faithful and loyal to her husband.

Pativrata literally means a virtuous wife who has made a vow (vrata) to her husband (Pati) of her devotion and protection. The belief is that if a wife is devoted to her husband and protects him, then he will prosper and will bring good fortune to her and their family. If not, then there might be misfortune and death. A pativrata listens to her husband and acts accordingly. A pativrata protects her husband in two ways. Firstly, she attends to his personal needs and encourages him to do his duty (dharma). Secondly, she undertakes various rituals and fasts to please the deities, hoping that the Gods will protect her husband from harm and grant him a long life.[1]

Sati is often used as a synonym for a pativrata -one who preserves her purity (sattva)- physically, mentally and emotionally. It is also used to denote a woman who immolates herself on the funeral pyre of her dead husband.[2] According to Brhaspati, a law-giver who lived during the Vedic age — “She is someone whose state of mind reflects that of her husband. She shares his distress, his delight, grows sickly and dresses unattractively in his absence, and dies when he does.”

सभी मनुष्यों के लिए विश्व का सत्य व परमात्मा का स्वरूप भिन्न भिन्न है ।

हिन्दू धर्म के मान्यता के अनुसार विवाह सम्बन्ध सभी जन्मों का सम्बन्ध होता है । हिन्दू शास्त्रों के विवाह वचन मात्र सोलह करोड़ पांच लाख हिन्दू स्त्रियों पर ही लागू होते है ऐसी स्त्रीयां अहंकार भेदभाव मातृभाव शालीनता सदागी जैसे गुणों से युक्त रहती है ये परिवारिक जीवन ही जीती है ये समाज देश दुनिया की जिन्दगी नहीं जीती है । ऐसी स्त्रियाँ मन से काम इच्छा के प्रति शून्य रहती है । पतिव्रता स्त्रीयो की चेतना जागृत करने पर उन्हें ज्ञात होता है की उसका पति ब्रह्म है अर्थात वह विश्व का कारण भी है नहीं भी सम्पूर्ण धर्मो के परमात्मा का स्वरूप उसकी कल्पना है सभी प्रचीन धर्म सभ्यता व साम्राज्य के कथा उसके स्वप्न है विश्व उसके पति के शरीर का ही छाया है सभी मनुष्य उसके आत्मा के ही विभिन्न जीवात्मा है और वहां स्वयं भी उसका मन है विश्व में सबसे पुन्य व पापी उसका पति है उसका पति वास्तव में ना किसी से प्रेम करता है ना घृणा मात्र जीवन जीता है वहां स्वयं अपने पति का मन होती है इसलिए वहां सदैव उसके स्मरण में रहती है अर्थात ह्रदय में । सम्पूर्ण विश्व की प्रकृति व मानवीय परिस्थितियों घटनाओं व गतिविधियों का उसके पति के सोच विचार व इच्छाओं के कारण ही है । वास्तव में ब्रह्म स्वरूप में जिस जिस पुरूष की आत्मा है वह पुरूष ना कभी जन्म लेता है ना मारता है उसकी स्त्री रूप ही जन्म मृत्यु में बंधी है । ऐसी स्त्रियाँ परम् ब्रह्म की सुरक्षा में रहती है कहा जाऐ आदिकाल से अनंतकाल तक के लिए पतिव्रता रहती है । अर्द्धांगिनी __ पुरूष की आत्मा का स्त्री रूप है । यहाँ सिध्दान्त मात्र पतिव्रता स्त्री पर लागू होती है अन्यों पर समाज की विचारधारा ही सत्य है ।

वही पुरूष ब्रह्म है जिसकी आत्मा अर्धनागेश्वरी के स्वरूप में है ।

See also

References

  1. Sati, the Blessing and the Curse: The Burning of Wives in India, by John Stratton Hawley
  2. http://www.baps.org/Article/2011/The-Pativrata-2245.aspx
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